ललिता देवी शक्तिपीठ - इलाहाबाद


ललिता देवी शक्तिपीठ -  इलाहाबाद 


यह शक्तिपीठ इलाहाबाद के प्रयाग में है। वैसे तो अलोपीदेवी स्थित ललितादेवी ही शक्तिपीठ है लेकिन अक्षयवट के पास कल्याणी या ललिता देवी का मंदिर है, इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। कुछ लोग मीरापुर के ललितादेवी मंदिर को भी शक्तिपीठ मानते हैं। लेकिन इतना तय है कि देवी सती के शरीर के अंग प्रयाग में गिरे थे। इसीलिए प्रयाग को तीर्थराज के अलावा शक्तिपीठ भी माना जाता है। देवी का यह मंदिर बड़ा ही मनोरम है। मुख्य प्रतिमा के पास अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। पुराणों के अनुसार प्रयाग में भगवती ललिता का स्थान अक्षयवट प्रांगण से वायव्यकोण यानी उत्तर-पश्चिम कोने में यमुना नदी के किनारे पर है। प्रयाग माहात्मय के अनुसार ललिता और कल्याणी दोनों एक ही हैं। कौनसा अंग गिरा- हाथ की अंगुली, शक्ति- ललिता, भैरव- भव

मंदिर में देवी की प्रतिमा बड़ी ही दिव्य है। देवी चतुर्भुज रूप में एक सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके ऊपर शीर्ष भाग में एक आभाचक्र और मस्तक पर योनि, लिंग व फणींद्र हैं। मध्यमूर्ति के बाएं पाश्र्व भाग में दस महाविद्याओं में से एक भगवती छिन्नमस्ता की सुंदर प्रतिमा भी है। दाहिनी ओर महादेव और माता पार्वती की प्रतिमाएं हैं। मुख्य प्रतिमा के ऊपर दाहिनी ओर गणेश तथा बायीं ओर हनुमान विराजमान हैं। ऊपर की ही ओर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति भी है। ललितादेवी मंदिर के पास ही ललितेश्वर शिव हैं।

त्रिवेणी संगम से थोड़ी दूर किले के अंदर अक्षयवट है। किले के यमुना किनारे वाले भाग में अक्षयवट का दर्शन सप्ताह में दो दिन सबके लिए खुला रहता है। कुछ समय पूर्व किले की पातालपुरी गुफा में एक सूखी डाल पर कपड़ा लपेटकर रखा जाता था। इसी को अक्षयवट कहकर दर्शन कराया जाता था। इसे पातालपुरी मंदिर भी कहते हैं। कहते हैं कि इस स्थान की भूमि के नीचे कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। प्रयाग के तीर्थस्थानों में अक्षयवट का बड़ा महत्व है। जैन समाज के लोग भी इसे पवित्र स्थान मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसके नीचे ऋषभदेवजी ने तपस्या की थी।

महत्वऐसा माना जाता है कि प्रयाग में देवी के हाथों की अंगुलियां गिरने से फ आकार की उत्पत्ति हुई थी। यहां दर्शन एवं पूजा-आराधना करने से हमारे जीवन के दु:ख दूर होते हैं। यहां शक्ति उपासना का भी बड़ा महत्व है।

प्रयाग एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। इसे तीर्थराज भी माना जाता है। गंगा-यमुना की धारा ने पूरे प्रयाग को तीन हिस्सों में विभाजित कर रखा है। कहते हैं कि इन तीनों भागों में पवित्र होकर एक-एक रात रहने से तीन अग्रियों की उपासना का फल मिलता है। ये अग्रियां हैं- गार्हस्पत्याग्नि, आहवनीय अग्रि और दक्षिणाग्रि। यहां माघ माह में मेला लगता है। इसे कल्पवास के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां बहुत से श्रद्धालु गंगा-यमुना के मध्य में कल्पवास करते हैं। बारह बरस में एक बार यहां कुंभ मेला भी लगता है। जब बृहस्पति वृष राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है तब यह मेला लगता है। कुंभ के छह महीने बाद अर्धकुंभी मेला भी लगता है। प्रयाग की परिक्रमा करने का भी महत्व है। परिक्रमा दो तरह से होती है। एक अंतर्वेदी जो दो दिनों में और दूसरी बहिर्वेदी जो कि दस दिनों में पूरी होती है। ऐसा कहते हैं कि प्रयाग में गंगा-यमुना के संगम में स्नान करने से व्यक्ति के सभी दु:ख दूर होते हैं। प्रयाग में मुंडन भी कराया जाता है। त्रिवेणी संगम के पास एक स्थान पर मुंडन कराया जाता है। विधवा महिलाएं भी यहां मुंडन कराती हैं। सौभाग्यवती महिलाएं यहां वेणी का दान करती हैं।

कैसे जाएंप्रयाग केंद्र स्थान होने के कारण वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। इलाहाबाद तक रेल द्वारा पहुंच सकते हैं। इसके बाद बस या अन्य लोक परिवहन के साधनों द्वारा पहुंच सकते हैं।

हनुमानजी का दुर्लभ मंदिर प्रयाग में कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें किले के पास हनुमानजी का मंदिर है। यहां जमीन पर लेटी हनुमानजी की प्रतिमा है। इसके पास ही मनकामनेश्वर शिव मंदिर है। यमुना के पार अरैलग्राम में भगवान शिव का छोटा-सा सोमनाथ मंदिर है। दारागंज में नागवासुकि, गंगा किनारे बलदेवजी और शिवकुटी है। करनलगंज में भरद्वाज आश्रम, गंगापार मुंशी के बाग में बिंदुमाधव के दर्शन होते हैं।

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