बुध मंदिर - थिरुवेनकाडु


बुध मंदिर - थिरुवेनकाडु 

सनातन धर्म और वैदिक परंपरा की मुख्य विशेषता है कि वह मानव का धर्म के माध्यम से प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ अटूट संबंध स्थापित करती है। इसी परंपरा के अंतर्गत ब्रह्मांड में स्थित सारे ग्रह, नक्षत्र आदि को ईश्वर मानकर उसकी पूजा और उपासना के विधान बनाए। इससे मानव स्वयं और प्रकृति की रक्षा करने में सक्षम हुआ। मानव को पीड़ाओं और कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी मिला। सौर मंडल में पाए जाने वाले अलग-अलग ग्रहों के देव मंदिर भारत के विभिन्न भागों में स्थित है। जैसे- शनि ग्रह का देव मंदिर शिंगणापुर में, मंगल ग्रह का देव मंदिर उज्जैन में। इसी क्रम में तमिलनाडु राज्य के कुंभकोनम जिले के माईलादुथुराई से २० किलोमीटर दूर थिरुवेनकाडु स्थान पर बुध देव का प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित है। बुध देव का प्राचीन मंदिर कावेरी और मणिकर्णिका नदी के समीप स्थित है। यह स्थान आदि चिदम्बरम के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां पर नवग्रह भी प्रतिष्ठित है, किंतु इस स्थान पर मुख्य रुप से मुख्य देवता के रुप में चार भुजाधारी बुध देव की पूजा का ही महत्व है। इस स्थान पर भगवान शिव का श्वेत रानेश्वर मंदिर भी स्थित है। थिरुवेनकादु को श्वेतअरण्य नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ होता है सफेद जंगल। इसी प्रकार बुद्धि के देवता बुध का स्थान होने से यह ज्ञान अरण्य क्षेत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके पीछे मान्यता है कि देवराज इन्द्र के वाहन ऐरावत हाथी ने यहां पर तप किया था। यह उत्तर के बनारस के समान ही पवित्र स्थान माना जाता है। 

प्राचीन काल से ही यह बहुत पवित्र स्थान माना जाता है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। वर्तमान मंदिर का निर्माण चोलकालीन माना जाता है। मंदिर की संरचना में दो विशाल इमारत पूर्व और पश्चिम में निर्मित है। जिस पर आकर्षक नक्काशी है। ऐसा माना जाता है यहां भगवान शिव ने चिदम्बरम में ताण्डव नृत्य करने से पूर्व उसका अभ्यास इस स्थान पर किया था। यहां मुख्य मंदिर में बुध देव और श्वेत रानेश्वर के अलावा ब्रह्म-विद्यादेवी, दुर्गा, काली, अघोर मूर्ति और नटराज आदि देवताओं की भी पूजा की जाती है। यहां पर प्राचीन परंपराओं के अनुसार श्रद्धालु बुध मंदिर की १७ बार परिक्रमा करते है। हर परिक्रमा में एक दीप प्रज्जवलित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बुध ग्रह के सभी अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और बुध देव भक्त को बुद्धि और समृद्धि प्रदान करते हैँ। साथ ही वह व्यवसाथ में सफलता, तनावों से राहत देने वाले, एकाग्रता, विद्या और अच्छी स्मरण शक्ति देने वाले भी माने जाते हैं। 

पौराणिक मान्यता के अनुसार बुध ग्रह, चंद्र देव और तारा की संतान है। बुध का विवाह मनु की पुत्री ईदा के साथ हुआ। पुरुरवा को इनकी संतान माना जाता है। लिंग पुराण के अनुसार बुध चंद्रमा और रोहिणी की संतान माने जाते हैं। जबकि विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्मपुराण अनुसार बुध चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध देव चार भुजाओं वाले हैं और उनका वाहन सिंह है। 

ज्योतिष विज्ञान में बुध ग्रह - 

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध ग्रह ईश्वर का दूत माना जाता है। यह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक है। इसलिए यह किसी भी व्यक्ति को विद्वान, शिक्षक, कलाका और सफल व्यवसायी बना सकता है। बुध ग्रह के प्रभाव से किसी भी व्यक्ति में दोहरा चरित्र देखा जाता है। बुध ग्रह को वात, पित्त और कफ का कारक या त्रिदोषात्मक माना जाता है। यह उत्तर दिशा का स्वामी माना जाता है। बुधदेव जल तत्व के स्वामी है। इसका रंग हरा है। इसी प्रकार बुधदेव मिथुन और कन्या राशि के स्वामी है। सूर्य और शुक्र के साथ इनकी मित्रता है। चंद्र के साथ इनकी शत्रुता है। बुध का अच्छा या बुरा प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ युति पर निर्भर करता है। बुध अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र के स्वामी माने जाते हैं। बुध की धातु कांसा, रत्न पन्ना और अंक ५ होता है।

पौराणिक महत्व - 

इस के संबंध में अनेक पौराणिक मान्यता है । मान्यता है कि जब शिव के वाहन नंदी पर एक दैत्य ने आक्रमण कर घायल कर दिया। तब शिव अपने उग्र अघोर मूर्ति रुप में प्रगट हुए और उस दैत्य का संहार किया। ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार जब बुध देव को नपुसंक होने का श्राप मिला, तब उन्होनें इस स्थान पर आकर भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए तप और उपासना की। शिव ने बुध के तप से प्रसन्न होकर न सिर्फ बुध को शापमुक्त किया बल्कि उन्हें बुध लोक का स्वामी भी बना दिया। दूसरी मान्यता के अनुसार इस पवित्र स्थान पर उपनिषद काल के संत श्वेतकेतु और देवराज इंद्र के वाहन ऐरावत ने भी भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु तप किया। इस स्थान के महत्व का वर्णन संगमकालीन कविताओं, जो शिलाप्पदीकरण नाम से प्रसिद्ध है, में मिलता है। इसके अलावा वाल्मीकी रामायण में भी इस स्थान का उल्लेख है। नयनार भक्तों द्वारा गाए जाने वाले भजनों में भी इस स्थान की महिमा मिलती है। 


पहुंच के संसाधन -

वायु मार्ग - थिरुवेनकाडु पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डे चेन्नई, तिरुचिरापल्ली और पोंडीचेरी है। 

रेलमार्ग - कांचीपुरम, थंजावुर, श्रीरंगम और कुंभकोनम मुख्य रेल्वे स्टेशन है, जहां से थिरुवेनकाडु पहुंचा जा सकता है। यह शियाजी रेल्वे स्टेशन से ९ किलोमीटर दूर स्थित है। 

सड़क मार्ग - चेन्नई और तिरुचिरापल्ली इन दो स्टेशनों से सड़क मार्ग द्वारा थिरुवेनकाडु पहुंचा जा सकता है। वैथीस्वरण कोयल और सेम्पोन्नर कोयल स्थानों से भी सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।

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