हरिद्वार

सनातन धर्म का दर्शन है कि एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति यानि ईश्वर एक ही है। उनको फिर चाहे ब्रह्मा, विष्णु या शिव के रुप में देखें। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवता होने पर भी धर्मावलंबी सभी को एक ही ब्रह्म का रुप मानकर पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ आराधना करते हैं। इसी धर्म भाव को पुष्ट करता है हिन्दू धर्म का पावन तीर्थ हरिद्वार, जिसे लोकभाषा में हरद्वार भी कहा जाता है। शास्त्र और पुराणों में इस नगरी को कुशावर्त, हर द्वार, कपिला और गंगाद्वार के नाम से जाना गया। किंतु हरिद्वार या हरद्वार कहलाने के पीछे यह धारणा रही है कि इस पवित्र स्थान से उत्तराखंड के विभिन्न शैव और वैष्णव तीर्थों की यात्रा शुरु होती है। इस क्षेत्र में शैव तीर्थों में केदारनाथ और वैष्णव तीर्थों में बद्रीनाथ प्रमुख है। शिव को हर नाम और विष्णु को हरि नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि शैव और वैष्णव तीर्थयात्राओं प्रवेश द्वार होने से पुरातन काल से ही यह हरिद्वार या हरद्वार नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी स्थान पर आकर ही परम पवित्र गंगा नदी पहाड़ों से उतरकर मैदानों में अपनी पवित्रता के साथ फैल जाती है। इस प्रकार हरिद्वार परम ब्रह्म के अलग-अलग स्वरुपों के उपासना स्थलों तक पहुंचने और ईश्वर को पाने का प्रवेश द्वार है। जहां से तीर्थयात्री गंगा में डुबकी लगाकर भावनाओं और मानस की पवित्रता के साथ आगे बढ़ते हैं। प्राचीन पंरपराओं अनुसार मायापुरी, कनखल, ज्वालापुर, भीमगौड़ भी हरिद्वार के ही प्रमुख तीर्थक्षेत्र है। हरिद्वार की पावन नगरी हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए धार्मिक अनुष्ठानों और कर्मों का प्रमुख स्थान है। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से आए श्रद्धालु हरिद्वार आकर पूजा और प्रार्थना करते हैं। हरिद्वार में हर १२ वें वर्ष में लगने वाले कुंभ मेले में हजारों तीर्थयात्री हर की पौड़ी के पवित्र घाट पर स्नान कर नई मानसिक चेतना पाते हैं। हरिद्वार और कुंभ मेले के पौराणिक महत्व की कथा है कि समुद्र मंथन में निकल अमृत कलश में से अमृत को पाने के लिए देव और दानवों के बीच संघर्ष हुआ। जिससे कलश से अमृत की बूंदे चार स्थानों नासिक, उज्जैन, हरिद्वार और प्रयाग में गिरी। इसलिए इन क्षेत्रों की भूमि पावन और पुण्यमयी मानी जाती है। हरिद्वार में हर छठें वर्ष अद्र्ध कुंभ की भी परंपरा है। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर असंख्य श्रद्धालु नित्य होने वाली पावन गंगा नदी की आरती में शामिल होते हैं। आरती के दीपों और गंगा नदी में उनके प्रतिबिम्ब से ऐसी सुनहरी रोशनी पैदा होती है जिससे यहां उपस्थित हर श्रद्धालु का ह्दय भक्ति और आस्था के प्रकाश से रोशन हो जाता है। इसके साथ ही गंगा नदी में प्रवाहित किए गए असंख्य दीपों से गंगा के बहते जल पर सुंदर अध्यात्मिक दृश्य उभरता है। वास्तव में हरिद्वार का पवित्र स्थान और गंगा नदी का जल, उसकी पवित्रता और प्रवाह हर व्यक्ति को जीवन के प्रति जोश, चेतना, मानसिक संबल और विश्वास से भर देता है। यहां आत्मिक आनंद और सुख का अनुभव होता है। पवित्र भूमि और जल का यह मिलन ही हरिद्वार को आस्था और साधना स्थल बनाता है। हिन्दू धर्म में उत्तराखंड को देवभूमि माना जाता है। इसके पीछे कारण यही है कि इस संपूर्ण क्षेत्र में अनेक पवित्र और पावन देवतीर्थ स्थित है। जो धार्मिक दृष्टि से ही मानव को चैतन्य नहीं करते वरन यहां पर पर्वत, नदियां, झरने, हरियाली के रुप में प्रकृति की अद्वितीय सुंदरता भी व्यक्ति के अंदर अध्यात्म, आनंद और ऊर्जा का संचार करती है। ऐसे सुख देने वाले स्थान को हम व्यवहारिक भाषा में स्वर्ग ही कहते हैं। इसी कारण से हरिद्वार भी स्वर्गद्वार कहलाता है। पौराणिक महत्व - पौराणिक महत्व की दृष्टि से हरिद्वार में ब्रहृा, विष्णु और शिव की नगरी है। त्रिदेव से जुड़े अनेक धार्मिक महत्व के देवस्थान है। हरिद्वार में प्रति बारह वर्ष में कुम्भ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के योग में कुंभ स्नान करने पर व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार सती के वैराग्य में घूमते हुए सती देह के अंग ह्दय और नाभि भी इस स्थान पर गिरे। इसलिए हरिद्वार में मायादेवी शक्तिपीठ भी है। भगवान आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के पुर्नजागरण की शुरुआत भी इसी स्थान से की। हिन्दू धर्म का पवित्र तीर्थ हरिद्वार धर्मस्थलों और उत्सवों के लिए अध्यात्मिक आकर्षण का प्रमुख स्थान है। यहां पर अनेक पौराणिक महत्व के मंदिर हैं। हरिद्वार मात्र धार्मिक महत्व ही नहीं रखता बल्कि यह कला, विज्ञान और संस्कृति के प्रमुख केन्द्र के रुप में पूरे विश्व में जाना जाता है। हर की पौड़ी - हरिद्वार का प्रमुख घाट है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर देवताओं और यक्षों को दर्शन दिए थे। इसके प्रमाण में यहां पर भगवान विष्णु के पाषाण पर चरण चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। इस स्थान पर से गंगा नदी की मुख्य धारा को काटकर बनाई गई गंगा नहर, पक्के घाट बहुत सुंदर और दर्शनीय है। इस घाट पर गंगा आरती धार्मिक दृ़ष्टि से आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। हर की पौड़ी स्थित ब्रह्मकुंड में स्नान का बहुत महत्व है। इसके पीछे पौराणिक कथा है कि एक बार श्वेतकेतु नाम के राजा की घोर तपस्या से ब्रह्मदेव प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा से वर मांगने को कहा। तब राजा श्वेतकेतु ने ब्रह्मदेव से वरदान मांगा कि ब्रह्मदेव, विष्णु और शिव के साथ इस स्थान पर सभी तीर्थों का वास हो। साथ ही यह स्थान ब्रह्मदेव के नाम से ही जगत में जाना जाए। ब्रह्देव ने राजा श्वेतकेतु की मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दिया। तब से यह स्थान ब्रह्मकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साथ ही ऐसा माना जाता है कि हरिद्वार में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ का वास है। इसलिए हरिद्वार में स्नान करने पर सभी तीर्थों में स्नान का पुण्य मिलता है। चार धाम तीर्थ की यात्रा से पहले सभी तीर्थयात्री इस घाट पर स्नान करते हैं। हर की पौड़ी घाट पर गंगा मंदिर, नवग्रह, शंकराचार्य एवं बाराखम्भा मंदिर भी धार्मिक महत्व रखते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस घाट का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भर्तृहरि की स्मृति में कराया था। गौ घाट - यह घाट हर की पौडी के दक्षिण में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि गाय की हत्या के दोषी इस स्थान पर स्नान करने से पापमुक्त होते हैं। दक्ष प्रजापति का मंदिर - माना जाता है कि हरिद्वार भगवान शिव के रौद्र और सात्विक दोनों स्वरुपों का गवाह है। इस बात की पुष्टि करता है यहां से तीन किलोमीटर दूर कनखल में स्थित दक्ष प्रजापति का मंदिर। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थित सतीकुण्ड पर भगवान शंकर और पार्वती की भक्ति भाव से आराधना से भक्त जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस मंदिर के पीछे शिव पुराण में कथा है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने 'बृहस्पतिÓ नामक यज्ञ में अपने पति शिव को आमंत्रित न करने और दक्ष द्वारा शिव की आलोचना से दु:खी और क्रोधित होकर सती ने अपनी देह यज्ञ की अग्रि में त्याग दिया। तब भगवान शिव वहां पहुंचे और सती के ऐसी दशा देखकर क्रोधित हुए । उनके क्रोध से वीरभद्र पैदा हुए । वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव वियोगी होकर सती की मृत देह को शरीर को अपने कंधे पर रख इधर-उधर घुमने लगे। तब भगवान विष्णु ने उनके वियोग को नष्ट करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। सती की मृत देह से अंग हरिद्वार में भी गिरा और यहां शक्तिपीठ बना। ऐसी मान्यता है कि जिस यज्ञ कुण्ड में सती ने अपनी देह का त्याग यिा वह इस मंदिर में स्थित है। कनखल में कोटेश्वर मंदिर भी स्थित है। कनखल हरिद्वार में स्थित पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। मनसादेवी मंदिर - हरिद्वार में स्थित मनसा देवी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यह शिवालिक पहाडी की चोटी पर स्थित है। इसे बिल्पा पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। गंगा के तट से यह मंदिर दिखाई देता है। यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि यहां से हिमालय पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य, गंगा नदी की बहती जलधारा और हरिद्वार का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। मनसा माता नाम के अनुरुप ही सभी मनोकामना पूरी करने वाली मानी जाती है। यह आदिशक्ति दुर्गा का ही स्वरुप है। माता की मूर्ति का स्वरुप तीन सिर, पांच भुजाओं वाला है। हरिद्वार में स्थित देवी के यंत्र त्रिकोण में बने तीन मंदिरों में यह मंदिर अधिक महत्व रखता है। मायादेवी मन्दिर - यह भारत में स्थित आदिशक्ति के ५१ शक्तिपीठों में एक मन्दिर माना जाता है। यहां भगवान शिव द्वारा वैराग्य में घूमते हुए सती की मृत देह से नाभि और ह्दय अंग गिरे थे। यह हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। यह सिद्धपीठ माना जाता है। यह हरिद्वार में बने सबसे प्राचीन मंदिरों में एक है। इसका निर्माण काल ११वीं सदीं का माना जाता है। चण्डीदेवी मन्दिर - यह त्रिकोणीय क्षेत्र में बने देवी के तीन मंदिरों में एक है। यह गंगा के दूसरे किनारे पर शिवालिक पर्वत के शिखर जिसे नीलपर्वत भी कहा जाता है, पर स्थित है। ऐसा माना जाता है इसका निर्माण काश्मीर के राजा सुचेता सिंह ने कराया। यहां पर श्री हनुमान की माता अंजनीदेवी का मन्दिर भी है। चंडी घाट से इसकी दूरी ३ किलोमीटर मानी जाती है। भीमगोडा मन्दिर व कुण्ड - हर की पौडी से १ किलोमीटर दूर ऋषिकेश के रास्ते पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों द्वारा हिमालय की ओर प्रस्थान करते समय भीम ने स्नान करने के लिए इस स्थान पर भूमि पर घुटना या गोड़ा मारकर कुण्ड बनाया और तप किया। सप्तऋषि आश्रम - यह पवित्र स्थान भीमगोडा से लगभग ४ किलोमीटर आगे स्थित है। यह सप्त सरोवर भी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां सप्तऋषियों कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, गौतम, जमदग्रि, विश्वामित्र और वशिष्ठ ने तपस्या की थी। जिससे गंगा नदी इस स्थान पर आकर सात धाराओं में बंट गई। कुशावर्त - यह स्थान भगवान दत्तादत्र की तपस्थली के रुप में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान दत्तात्रय हजारों वर्षों तक तप किया था। इसलिए इस स्थान पर यज्ञ, दान, धर्म-कर्म का बहुत महत्व है। पारद शिवलिंग मंदिर - यह हरिद्वार में हरिहर आश्रम में स्थित है। पारद का शिवलिंग चमत्कारिक और जागृत माना जाता है। इस शिवलिंग का भार लगभग १५० किलो है। यहां पर स्थित रुद्राक्ष का पेड़ भी श्रद्धालुओं का आकर्षित करता है। शांति कुंज - भारतीय समाज को आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित कर नई दिशा देने वाले पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित गायत्री परिवार का मुख्यालय शांतिकुंज यहां पर स्थित है। गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय - पूरे विश्व यह स्थान अपनी अनूठी शिक्षा परंपरा के लिए अलग पहचान रखता है। यहां पर आज भी गुरु-शिष्य परंपरा अनुसार आज भी वैदिक शिक्षा का दी जाती है। स्वामी श्रद्धानंद द्वारा इस विश्व विद्यालय की स्थापना की गई थी। वह आर्य समाज के अनुयायी थे। हरिद्वार की पवित्र भूमि के गंगा के किनारे बसे होने से वर्ष भर होने वाले पर्व स्नानों, उत्सवों, मेलों और धार्मिक कर्मों के लिए भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। गंगा दशहरा - हरिद्वार गंगा नदी के पावन तट पर स्थित है। गंगा नदी का अवतरण हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी का माना जाता है। अत: इस तिथि को हरिद्वार में बहुत धार्मिक भाव और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। विशेष रुप से हर की पौड़ी पर गंगा की महा आरती में अपार जनसैलाब एकत्रित होता है। सामान्यत: यह तिथि माह जून-जुलाई में आती है। महाकुम्भ मेला - पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक वह पवित्र तीर्थ है, जहां समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश से अमृत पान के लिए देव-दानवों में १२ दिन तक चले संघर्ष के दौरान अमृत की बूंदे छलक कर गिरी। इसीलिए देवताओं के १२ दिन के अनुसार इस युग में प्रति बारह वर्षों में हरिद्वार में जब कुम्भ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य प्रवेश करता है, तब यहां पर कुंभ स्नान का योग बनता है। जिसमें स्नान करने पर हर व्यक्ति मोक्ष को पाता है। अर्द्धकुंभ - धार्मिक महत्व के समागम में एक अवसर है अर्द्धकुंभ का यह प्रत्येक कुंभ के छ: वर्ष बाद होता है। जो वर्तमान में चल रहे कुंभ के अनुसार वर्ष २०१६ में आएगा। कांवड मेला - हिन्दू पंचांग अनुसार श्रावण और भादौ माह में यानि जुलाई और अगस्त माह में भगवान शिव की आराधना के लिए हजारों शिव भक्त, जो कांवडिया कहलाते हैं, हरिद्वार आकर गंगा का पवित्र जल लेने के लिए पैदल नंगे पैर आते हैं। श्रावण मे शिव पूजा का महत्व है, इसलिए गंगा के जल लेकर अपने प्रसिद्ध शिव स्थलों पर ले जाकर वह गंगा जल अर्पित करते हैं। नवरात्रि - हरिद्वार में मायादेवी का शक्तिपीठ प्रसिद्ध है। आदिशक्ति का सिद्धपीठ होने से यहां पर नवरात्रि विशेष श्रद्धा और आस्था से मनाई जाती है। विशेषकर चैत्र और आश्विन की नवरात्रि जो मार्च-अप्रैल तथा अक्टूबर में मनाई जाती है। महाशिवरात्रि - हर या शिव तीर्थ की यात्रा और शिव का स्थान होने से भी हरिद्वार में शिव पूजा का बहुत महत्व है। इसलिए शिव की प्रिय रात्रि महाशिवरात्रि जो हिन्दू पंचांग अनुसार माघ माह यानि फरवरी में आती है, बड़ी भक्ति और भावना से मनाई जाती है। इन बड़े अवसरों पर होने वाले मेलों, उत्सवों के साथ ही हरिद्वार के पवित्र स्थान पर वर्ष भर पर्व स्नान होते हैं। जिनमें बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मावलंबी स्नान, धर्म, कर्म कर पुण्य पाकर स्वयं को कृत्य-कृत्य अनुभव करते हैं। हिंदू पंचाग के बारह मास में पवित्र स्नानों की परंपरा है। किंतु इनमें कुछ मास विशेष फल देने वाले माने जाते हैं। इनमें वैशाख की प्रतिपदा या एकम तिथि, कार्तिक पूर्णिमा और आषाढ़ मास की दशमी तिथि को स्नान पुण्य देने वाला माना जाता है। इसके अलावा हर माह की एकादशी, पर्व स्नानों में मकर संक्रांति, अमावस्या का बहुत धार्मिक महत्व है। सूर्य और चंद्रग्रहण होने पर भी हरिद्वार में स्नान का विशेष महत्व है। पहुंच के संसाधन - वायु मार्ग - हरिद्वार से निकटतम हवाई अड्डे देहरादून और नई दिल्ली है। नई दिल्ली से अनेक घरेलू विमान सेवाएं देहरादून तक कुछ विशेष दिनों पर उपलब्ध होती है। रेल मार्ग - हरिद्वार के निकटतम रेल्वे स्टेशन देहरादून और ऋषिकेश हैं। हरिद्वार देश के सभी बड़े शहरों से रेल मार्ग से जुड़ा है। सड़क मार्ग - हरिद्वार से राष्ट्रीय राजमार्ग - ४५ गुजरता है। इसलिए यह भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। हरिद्वार की देहरादून से दूरी लगभग ५० किलोमीटर और ऋषिकेश से लगभग २४ किलोमीटर दूर है।

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