वृंदावन

भक्ति मार्ग की तीन धाराएं मानी जा सकती है - गायन, नृत्य और रुदन या रोना। जिनके द्वारा भक्त भगवान से जुड़ जाता है। भक्ति मार्ग की इन तीन धाराओं का हर रूप भगवान भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और लीलाओं का प्रमुख स्थान वृंदावन और उसके आसपास के क्षेत्रों में श्रीकृष्ण के अनेक मंदिरों में देखा जा सकता है। यह सभी मंदिर श्रीकृष्ण भक्ति को ही समर्पित हैं।

इस्कॉन मंदिर - योगेश्वर श्री कृष्ण की नगरी वृदांवन का इस्कॉन मंदिर श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर की स्थापना श्रीकृष्ण के परम भक्त भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा सन १९७५ में रामनवमी के शुभ दिन की गई। यह मंदिर उत्तर वृंदावन, उत्तरप्रदेश के रमन रेती क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम यमुना के किनारे रमन रेती में अपनी गायों को चराने लाया करते थे। मंदिर तीन भागों में बना है। पहले भाग में श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतार माने जाने वाले श्री श्री गोरा निताई और पश्चिम बंगाल में जन्में श्री नित्यानंद महाप्रभु का पूजन होता है। मध्य भाग में भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम की प्रतिमाएं हैं। तीसरे भाग में भगवान श्री श्री राधा श्यामसुंदर और उनकी प्रिय गोपियां ललिता और विशाखा की प्रतिमाएं स्थापित है। सन् १९७५ में पूज्य श्री प्रभुपाद के वृंदावन को कृष्ण भक्ति का अंतराष्ट्रीय केन्द्र बनाने की इच्छा इस मंदिर परिसर का विस्तार किया गया। मुख्य मंदिर परिसर की दीर्घा में भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को खुबसूरत पेंटिग द्वारा सजाया गया है। पूरे विश्व के श्रीकृष्ण भक्त और इस्कॉन अनुयायी यहां आकर मंदिर में आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होते हैं और श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर परम आनंद को महसूस करते हैं।

इस्कॉन संप्रदाय के इस मंदिर में एक पुरातन काल के गुरुकूल परंपराओं की भांति आवासीय विद्यालय है। जिसमें पहली से लेकर सातवीं स्तर की कक्षाओं तक अध्ययन कराया जाता है। इस विद्यालय में गुरुकूल के समान शिक्षण प्रणाली है, जिसमें छात्र और शिक्षक एक ही विद्यालय परिसर में रहते हैं। जिससे इस विद्यालय में विद्यार्थी अपने गुरु को देखकर संस्कारित होता है। मंदिर परिसर में बाहर से आए श्रद्धालूओं के ठहरने के लिए विश्राम गृह बने हैं। जिससे वह मंदिर में हर रोज होने वाले धार्मिक रीति-रिवाजों और आयोजनों में बिना किसी असुविधा के शामिल हो सके।

बांके बिहारी मंदिर - भगवान श्रीकृष्ण का यह मंदिर वृंदावन के साथ ही पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इसका मंदिर निर्माण सन् १८६४ में पूर्ण हुआ। श्री बांकेबिहारी को कृष्ण भक्त स्वामी हरिदास द्वारा प्रतिष्ठित किया गया। स्वामी हरिदास अपने भक्तिमय भजन के साथ ही इतिहास प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के गुरु के रुप में भी जाने जाते हैं।

द्वारकाधीश मंदिर - वल्लभाचार्य संप्रदाय का मथुरा के पूर्वी भाग में स्थित यह मंदिर श्रीकृष्ण भक्तों और पर्यटकों में सबसे लोकप्रिय है। जहां प्रतिदिन हजारों लोग श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहां आते हैं। यह मंदिर नगर के मध्य स्थित है। इसका निर्माण सन १८१४ में पूर्ण हुआ। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर यमुना नदी प्रवाहित होती है। इस मंदिर वास्तुकला का सुंदर नमूना है। इसमें की गई नक्काशी और चित्रकारी भी भक्तों के आकर्षण का केन्द्र है। इस मंदिर में होली, दीपावली और श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसरों पर धार्मिक गतिविधियां होती है। जिसमें श्रीकृष्ण भक्तों को अपार जनसैलाब उमड़ता है।

राधा मदन मोहन मंदिर - श्री कृष्ण का यह मंदिर वृंदावन में बनाया गया प्रथम श्रीकृष्ण मंदिर माना जाता है। इसकी स्थापना श्री सनातन गोस्वामी द्वारा की गई थी। उस समय इस स्थान पर वन क्षेत्र होता था। ऐसा माना जाता है कि कट्टरपंथी मुगल शासक के वृंदावन पर आक्रमण के समय भगवान मदनमोहन की मूल प्रतिमा को बचाने के लिए राजस्थान के करौली ले जाया गया।

सेवाकुंज - सेवाकुंज वह स्थान है, जिसके पीछे मान्यता है कि इस स्थान पर श्रीकृष्ण और राधा, गोपियों के साथ रासलीला किया करते थे। यहां पर राधा-कृष्ण का एक छोटा मंदिर भी स्थापित है।

राधावल्लभ भवन - यह वृंदावन का एक और लोकप्रिय मंदिर है। इसकी स्थापना हरिवंश गोस्वामी द्वारा की गई थी। हरिवंश गोस्वामी राधारानी की भक्ति को समर्पित राधावल्लभ संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां राधारानी की कोई प्रतिमा नही है, किंतु उनकी उपस्थिति को दर्शाने के लिए श्रीकृष्ण की प्रतिमा के सामने एक मुकूट रखा गया है। राधा वल्लभ का पहला मंदिर मुस्लिम आक्रमण में १६७० में नष्ट कर दिया गया था। उस मंदिर के स्थान पर यह नवीन मंदिर निर्मित है।

जयपुर मंदिर - यह वृंदावन के सबसे वैभवशाली मंदिरों में एक है। इसका निर्माण जयपुर के महाराजा माधव द्वारा कराया गया। यह मंदिर १९१७ में बनकर तैयार हुआ और इसके निर्माण में ३० वर्ष लगे। यह मंदिर बलुआ पत्थर पर की गई हस्तशिल्प और नक्काशी का सुंदरतम नमूना है। इस मंदिर में संगमरमर पर मुगल वास्तुकला की भी झलक देखने को मिलती है। इस मंदिर के निर्माण के लिए महाराजा ने पत्थर और अन्य निर्माण सामग्री लाने के लिए रेल लाईन का निर्माण कराकर वृंदावन को मथुरा से जोड़ दिया। इस मंदिर में प्रमुख रुप से श्री राधा माधव, आनंद बिहारी और हंस-गोपाल की प्रतिमाएं विराजित हैं।

राधा दामोदर मंदिर- यह श्री कृष्ण भक्ति का एक प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर मूल प्रतिमा को रुपा गोस्वामी द्वारा अपने हाथों से पाषाण पर नक्काशी कर अपने प्रिय शिष्य जीवा गोस्वामी को भेंट किया गया था। बाद में जीवा गोस्वामी द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई। पहले यह स्थान सेवाकुंज के मध्य स्थित था, जहां बैठकर रुपा गोस्वामी भजन किया करते थे।

केसी घाट - इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने विशाल घोड़े का रुप बनाकर आए केसी दैत्य का वध कर स्नान किया था। वृंदावन का यह स्थान स्नान घाट के रुप में भी जाना जाता है। यहां रोज शाम को यमुना नदी की आरती की जाती है।

रंगजी मंदिर - यह वृंदावन में स्थित सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। यह दक्षिण भारतीय शैली में बना मंदिर है। यह मथुरा के एक धनी परिवार द्वारा सन् १८५१ में बनाया गया था। यह मंदिर भगवान रंगनाथ या रंगजी को समर्पित है। मूर्ति का स्वरुप शेषनाग पर विश्राम कर रहे भगवान विष्णु का है। चैत्र माह में यहां पर रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसे ब्रह्मोत्सव के नाम से जाना जाता है।

जुगल किशोर मंदिर - यह वृंदावन के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह सन् १६२७ में बनकर तैयार हुआ। ऐसा माना जाता है कि सन् १५७० में मुगल शासन अकबर ने जब वृंदावन आए तो उन्होंने गोदिया वैष्णव को चार मंदिर निर्माण की अनुमति दी। यह चार मंदिर थे - मदन मोहन मंदिर, गोविंदजी, गोपीनाथ और जुगल किशोर मंदिर। यह मंदिर केसी घाट के समीप स्थित होने से इन मंदिरों को केसी घाट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। राधा रमन मंदिर - इस मंदिर की स्थापना गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा की गई। राधारमन भगवान श्री कृष्ण का ही एक नाम है और इसका शाब्दिक अर्थ होता है कि राधा का सौभाग्य देेने वाले। इस मंदिर में बैठने के लिए एक लकड़ी की चौकी और एक शाल रखी गई है। जिनके पीछे मान्यता है कि यह दोनों चैतन्त महाप्रभु द्वारा गोपाल भट्ट गोस्वामी को भेंट की गई थी।

शाह मंदिर - यह मंदिर भी श्री कृष्ण भक्ति को समर्पित एक लोकप्रिय देवस्थान है। इसका निर्माण लखनऊ के स्वर्ण व्यापारी कुंदनलाल शाह द्वारा सन १८७६ का माना जाता है। मंदिर के प्रमुख देवता छोटे राधारमन के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर शानदार वास्तुकला, संगमरमर की गई सुंदर नक्काशी, कॉंच का कार्य आदि के लिए प्रसिद्ध है।

कैसे पहुंचे वृंदावन -

वृंदावन पहुंचने के लिए वायुमार्ग, रेलमार्ग और सड़क मार्ग से परिवहन उपलब्ध है।

वायुमार्ग - आगरा हवाई अड्डा सबसे निकटतम है। जिसकी वृंदावन से दूरी ६६ किलोमीटर है। यह दिल्ली, खजुराहो और वाराणसी हवाई अड्डों से भी सरकारी और निजी हवाई सेवाओं से जुड़ा है।

रेलमार्ग - मथुरा जंक्शन वृंदावन पहुंचने के लिए प्रमुख रेल्वे स्टेशन है। यहाँ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ-आगरा से अनेक रेलगाडिय़ाँ का आवागमन होता है। जिनमें प्रमुख है - पंजाब मेल, तेज एक्सप्रेस, अगस्त क्रांति एक्सप्रेस, राजधानी और तूफान एक्सप्रेस आदि।

सड़क मार्ग - वृंदावन और मथुरा आगरा, दिल्ली, भरतपुर, अलवर और लखनऊ से सड़क मार्ग से जुड़ा है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना नदी के तट पर स्थित, वृंदावन शहर एक प्राचीन वन का स्थान है जहाँ हिंदू देवता कृष्ण ने अपने बचपन के दिन बिताए थे। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा से लगभग 15 किलोमीटर दूर, शहर में सैकड़ों मंदिर हैं जो कृष्ण और उनकी पत्नी राधा की पूजा के लिए समर्पित हैं।

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