मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंङ्ग - दक्षिण का कैलाश


मल्लिकार्जुन - दक्षिण का कैलाश 

भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंङ्ग आंध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्री शैलम् पहाड़ी पर स्थित है। यह हैदराबाद से लगभग २१० किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान शिव का यह पवित्र मंदिर नल्लामलाई की आकर्षक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। श्री सेलम का यह क्षेत्र बहुत धार्मिक और पौराणिक महत्व रखता है। यहां पर भगवान शिव के बारहवें ज्योर्तिंलिंग के साथ ही महाशक्तियों में एक भ्रमराम्बा देवी भी विराजित है। शिव और शक्ति के दोनों रुप स्वयंभू माने जाते हैं। इस पहाड़ी को श्री पर्वत, मलया गिरि और क्रौंच पर्वत भी कहते हैं। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं । 

मंदिर - श्री सेलम पहाड़ी पर स्थित श्री मल्लिकार्जुन का यह मंदिर एक किले की भांति दिखाई देता है और अपनी सुंदर कलाकृतियों से समृद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है, जिसके सामने नंदी की विशाल मूर्ति है। मंदिर में अनेक सुंदर कलाकृतियां बनी है, जो परिसर को आकर्षक बनाती है। यहां संत बृंगी की तीन पैरों पर खड़ी कलाकृति भी आकर्षक का केन्द्र है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि संत बृंगी द्वारा मात्र शिव की भक्ति करने से माता पार्वती ने नाराज होकर संत को कंकाल बन जाने का श्राप दे दिया। किंतु भगवान शिव के मनाने पर माता पार्वती ने संत का खड़े रहने के लिए तीसरा पैर दे दिया। 

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का पाषाण लिंग विराजित है। मुख्य मंडप में विजयनगर शैली में की गई शिल्पकला स्तंभों पर दिखाई देती है। शिव का गण नंदी एक अलग मंडप में विराजित है। यहां नटराज और सहस्त्रलिंग का एक छोटा मंदिर भी स्थित है। यहां पर सहस्त्र लिंग की प्रतिमा आकर्षण का केन्द्र है। मुख्य लिंग २५ मुखों में विभाजित है और यह २५ मुख में प्रत्येक फिर से ४० लिंगों को दर्शाता है। इस प्रकार कुल १००० लिंगों के होने से यह लिंग सहस्त्र यानि हजार लिंग कहलाता है। इस लिंग के चारों ओर तीन मुखों वाला नाग भी उकेरा गया है। 

भगवान मल्लिकार्जुन के इस मंदिर के कुछ दूरी पर माता भ्रमराम्बा का मंदिर स्थित है। माता मल्लिकार्जुन की अद्र्धांगिनी है। ऐसा माना जाता है माता भ्रमराम्बा एक मक्खी के रुप यहां पर भगवान शिव की उपासना करती है। यहां भगवान शिव के मल्लिकार्जुन नाम में में मल्लिका का मतलब पार्वती और अर्जुन का अर्थ शिव होता है। शिवरात्रि के दिन इनकी पूजा और आराधना का धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर में आकर भगवान मल्लिकार्जुन की भक्ति में प्रसिद्ध शिवानंद लहरी और माता भ्रमराम्बा की स्तुति में भ्रमराम्बिका अष्टकम गाया था। 


पहुंच के संसाधन 

बस सुविधा- आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से श्री शैलम् के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल या अन्य साधनों (बैलगाड़ी एवं पालकी) से जा सकते हैं।

रेल सुविधा- हैदराबाद, विजयनगर और कर्नूल तक रेल सुविधा उपलब्ध है। सबसे पास का रेलवे स्टेशन मार्कापुर है जो करीब सौ किमी दूर है। 

वायुसेवा- हैदराबाद में हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, तिरुपति, चैन्नई, भुवनेश्वर, पुणे आदि शहरों से जुड़ा है।

कब जाएं- नवंबर से फरवरी माह तक के मौसम में मल्लिकार्जुन जाना अच्छा रहता है। 

सलाह :- यह तीर्थ पहाडी स्थल पर स्थित है । इसलिए यात्रा दुर्गम होती है । चढाई के दौरान पानी की समस्या हो सकती है । इसलिए यात्रीगण अपने साथ मीठा पानी ले सकते हैं । पालकी आदि पर यात्रा वृद्ध यात्री के लिये जोखिम भरा हो सकता है।

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