अष्ट विनायक - श्री सिद्धविनायक गणेश


अष्ट विनायक गणेश या भगवान श्री गणेश के आठ पवित्र मंदिर महाराष्ट्र के पुणे के समीप स्थित है। इसी अष्टविनायक यात्रा का एक पड़ाव श्री सिद्धविनायक गणेश मंदिर है। यह महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की करजत तहसील के दूरस्थ गांव सिद्धटेक में स्थित है। सिद्धटेक भीमा नदी के किनारे बसा है। नदी का प्रवाह दक्षिणामुखी है। एक रोचक बात यह है कि यह स्थान बहुत शांत क्षेत्र है। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि यहां भीमा नदी तेज गति से प्रवाहित होती है, परंतु उसका कोई शोर नहीं होता। यहां श्री सिद्धविनायक गणेश सिद्धी देने वाले बलशाली देवता के रुप में प्रसिद्ध है।

पौराणिक महत्व -

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहां पर तप कर सिद्धी प्राप्त की। इस सिद्धी के बल से भगवान विष्णु ने सहस्त्र यानि हजार वर्षों तक मधु और कैटभ नाम के शक्तिशाली दैत्यों से युद्ध कर उनका संहार करने में सफल हुए। कथानुसार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचना के विचार से ओम अक्षर का लगातार जप किया। जिससे भगवान श्री गणेश उनकी तपस्या प्रसन्न और ब्रह्मदेव को सृष्टि रचना करने की मनोकामना पूरे होने का वरदान दिया। जब भगवान ब्रह्मदेव सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब भगवान विष्णु को नींद आ गई। शयन की स्थिति में भगवान विष्णु के कानों से मधु और कैटभ नाम के दैत्यों बाहर निकले। दोनों दैत्यों बाहर आकर समस्त देवी-देवताओं को पीडि़त करने लगे। तब भगवान ब्रह्मदेव ने देवी-देवताओं से कहा कि भगवान विष्णु ही इन दैत्यों का संहार करने में सक्षम है। भगवान विष्णु भी शयन से जागे और उन्होंने उन दोनों शक्तिशाली दैत्यों को मारने की भरसक कोशिश की, परंतु वह असफल रहे। तब भगवान विष्णु ने युद्ध रोककर गंधर्व का रुप लेकर शिव भक्ति में गाना शुरु किया। तपस्या में लीन भगवान शिव ने जब यह सुनकर तप से जागे। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव से दैत्यों को मारने का उपाय पूछा। तब भगवान शिव ने विष्णु से कहा कि जब तक वह श्री गणेश का आशीर्वाद प्राप्त नहीं करते उन्हें युद्ध में सफलता नहीं मिलेगी। भगवान शिव ने विष्णु को श्रीगणेश का षडाक्षर मंत्र गणेशाय नम: जपने को कहा। जिससे वह जो चाहेंगे प्राप्त कर लेगें।

यहां श्री गणेश ने भगवान विष्णु को दर्शन दिए। इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु द्वारा किया गया माना जाता है। तब भगवान विष्णु ने भगवान श्री गणेश की कृ पा प्राप्त करने के लिए सिद्धक्षेत्र वर्तमान सिद्धटेक को चुना। यहां घोर तप कर उन्होंने श्री गणेश को प्रसन्न किया। भगवान गणेश ने उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दिया। तब भगवान विष्णु सिद्धी प्राप्त कर पर्वत की चोटी पर भगवान गणेश का मंदिर बनाया और गजानन की मूर्ति स्थापित की। इसके बाद भगवान विष्णु ने दैत्यों का संहार किया और श्री गणेश के आशीर्वाद से ही ब्रह्मदेव ने निर्विघ्र सृष्टि रचना की। भगवान ब्रह्मदेव की दोनों पुत्रियों को श्रीगणेश ने अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार किया।

ऐसा माना जाता है कि यहां वेद व्यास ने भी पुराणों की रचना से पहले तप किया और भगवान श्री गणेश की प्रसन्नता प्राप्त की। युगान्तर में भगवान विष्णु द्वारा बनाया गया श्री गणेश मंदिर तो नष्ट हो गया। किंतु ऐसा माना जाता है कि एक चरवाहे ने इस स्थान पर भगवान गणेश के दर्शन किए। तब उसने यहां पर भगवान गणेश का पूजन शुरु किया। इसके बाद पेशवा काल में इस नवीन मंदिर का पुननिर्माण हुआ।

मंदिर और प्रतिमा -

अष्टविनायक गणेश में श्री सिद्धी विनायक मंदिर उत्तरामुखी होकर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर का मंदिर में श्री सिद्धविनायक गणेश की स्वयंभु प्रतिमा विराजित है। यह स्थान 5 फिट ऊंचा और १० फीट लंबा है। सिद्धीविनायक प्रतिमा के आस-पास जय और विजय की कांसे से बनी मूर्ति भी विराजित है। मंदिर में ही शिव परिवार का छोटा सा मंदिर है। प्रतिमा जाग्रत मानी जाती है। यह तीन फीट ऊंची है और ढाई फीट चौड़ी है। उत्तरामुखी है। श्री सिद्धीविनायक की सूंड दाएं ओर मुड़ी हुई है। दांए सूंड वाली गणेश प्रतिमा और मंदिर को बहुत सिद्धी देने वाला माना जाता है। ऐसे गणेश शीघ्र कृपा करने वाले और प्रसन्न होने वाले माने जाते हैं। प्रतिमा गजमुखी है, फिर भी उनकी सूंड बहुत बड़ी नहीं है। रिद्धी और सिद्धी श्री गणेश की पालथी में विराजित है। मुख मण्डल बहुत सुंदर और आकर्षक है। ऐसा माना जाता है भगवान श्री सिद्धीविनायक की परिक्रमा बहुत सुफल देने वाली है। एक प्रदक्षिणा ५ किलोमीटर की होती है। मुख्य मंदिर के समीप ही अन्य देवी-देवताओ के मंदिर है। जिनमें भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता शीतला मंदिर प्रमुख है।

उत्सव -

श्री सिद्धीविनायक मंदिर में भाद्रपद और माघ माह की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से पंचमी के मध्य गणेश उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस दौरान यहां पर महापूजा और महाभोग का आयोजन होता है। भगवान गणेश की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर कर नगर में भ्रमण कराया जाता है। आरती, पूजा आदि की जाती है।

कैसे पहुंचे -

वायु मार्ग - श्री सिद्धीविनायक, सिद्धटेक पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डे पुणे और मुंबई है। रेल मार्ग - सिद्धटेक जाने के लिए नजदीकी रेल्वे स्टेशन हैं - मुंबई, लोकमान्य तिलक, अहमदनगर और पुणे। पुणे-सोलापुर रेल मार्ग पर डांड स्टेशन से सिद्धटेक १८ किलोमीटर दूर स्थित है। सड़क मार्ग - पुणे से सिद्धटेक की दूरी १०० किमी और मुंबई से २७५ किमी है। पुणे से डांड जाने वाली बस शिरापुर नाम ग्राम आती है। जहां से सिद्धटेक मात्र १ किलोमीटर दूर है। यहां आकर बोट के माध्यम से सिद्धटेक पहुंचा जा सकता है।

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